ये हैं प्राचीन दुनिया के सात अजूबे, छह का मिट गया नामोनिशान, सिर्फ एक को 4600 साल बाद आज भी देख सकते हैं आप

ये हैं प्राचीन दुनिया के सात अजूबे, छह का मिट गया नामोनिशान, सिर्फ एक को 4600 साल बाद आज भी देख सकते हैं आप

Seven Wonders of Ancient Times : आज के समय में सात अजूबों के बारे में तो हर कोई जानता है. लेकिन प्रचीन काल में भी अजूबे थे, जो हाइटेक टेक्नोलॉजी न होने के बावजूद भी अस्तित्व में आए थे. सैकड़ो साल पहले अस्तित्व में आए इन अजूबों में से कुछ के सबूत हैं तो कुछ के बारे में सिर्फ लिखा मिलता है.


आपने सात अजूबों के बारे में जरूर सुना होगा, जिसमें भारत का ताजमहल भी आता है। लेकिन क्या आपको प्रचीन समय के सात अजूबों के बारे में पता है? प्राचीन समय के सात अजूबे मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिणी यूरोप के कई असाधारण वास्तुकला थे। हालांकि प्राचीन दुनिया के सात अजूबे किसे कहा जाए ये हमेशा से बहस का मुद्दा रहा है।


अलग-अलग लेखक दुनिया की अलग-अलग जगहों को इस लिस्ट में शामिल करना चाहते हैं। पुरातत्वविद पीटर क्लेटन और मार्टिन प्राइस ने अपनी किताब "द सेवन वंडर्स ऑफ द एंशिएंट वर्ल्ड" में सात अजूबों के बारे में बताया है। इसके साथ ही उन्होंने लिखा है कि हमारे पास आज जो लिस्ट है वह 14वीं से 16 शताब्दी के हैं। आइए जानते हैं प्राचीन समय के सात अजूबों के बारे में।


मिश्र का पिरामिड

 pyramid 

मिस्र के पिरामिड हमेशा से पुरातत्वविदों में कौतूहल का विषय रहे हैं। मिस्र के पिरामिड से जुड़े कई सवालों के जवाब आज भी ढूंढ़े जा रहा है। मिस्र का पिरामिड इकलौती ऐसी जगह है जो प्राचीन समय से लेकर आज भी अस्तित्व में है। इस पिरामिड का निर्माण 4600 साल पहले मिस्र के फिरौन खुफू के लिए एक मकबरे के रूप में बनाया गया था। सन 1311 में इंग्लैंड में लिंकन कैथेड्रल के सेंट्रल टॉवर के निर्माण से पहले यह दुनिया की सबसे ऊंची संरचना हुआ करती थी।


जब पहली बार पिरामिड का काम पूरा हो गया था तो इसकी ऊंचाई 147 मीटर थी। लेकिन आज इसके कई पत्थर गायब हो गए हैं, जिसके कारण इसकी ऊंचाई 139 मीटर बची है। पिरामिड के अंदर एक ताबूत का कमरा है, जहां एक गैलरी के जरिए पहुंचा जा सकता है। आम तौर पर इसे किंग्स चेंबर कहा जाता है। इसके अलावा पिरामिड में क्वींस चेंबर भी है। 2017 में वैज्ञानिकों को स्कैनिंग के दौरान एक और चेंबर दिखा था।


बेबीलॉन के झूलते बगीचे


hanging garden of babylon

बीलॉन के झूलते बगीचों के बारे में माना जाता है कि यह बाग इराक के बेबीलोन शहर में स्थित थे। हालांकि इसके कोई पक्के सबूत नहीं हैं जो इस बात को साबित कर सके कि यह बाग असल में थे। लेकिन किंवदंतियों के अनुसार 600 ईसा पूर्व बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर द्वितीय ने इसे अपनी पत्नी के लिए बनवाया था। बताया जाता है कि यह बाग जमीन पर न होकर एक महल पर बने थे। इसमें झरने भी थे।


हालांकि कई प्राचीन लेखकों ने इस बाग का जिक्र किया है। प्राचीन यूनानी इतिहासकार डियोडोरस सिकुलस ने पहली शताब्दी में लिखा कि बगीचे पहाड़ी की ढलान वाली संरचान पर बने थे। कई हिस्से सीढ़ीनुमा तरीके से एक दूसरे से जुड़े थे। हालांकि वर्तमान में पुरातत्वविदों ने खुदाई की, लेकिन उन्हें इस तरह की कोई संरचना नहीं मिली।


ओलम्पिया में जियस की मूर्ति

ZEUS AT OLYMPIA

प्राचीन ग्रीक लेखक स्ट्रैबो ने 64 ई.पू. से 24 ई. में लिखा है, "ग्रीस के प्रमुख ओलंपिक देवता जियस या बृहस्पति की मूर्ति लगभग 450 ई.पू. में बनाई गई थी, जिसकी ऊंचाई 40 फीट थी। इस मूर्ति की खास बात यह थी कि इसे बनाने में बड़े पैमाने पर हाथी दांत का इस्तेमाल किया गया था। बृहस्पति को इसमें बैठा दिखाया गया है। इसमें उसका सिर छत को छू रहा है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि अगर वह खड़ा हो गया तो मंदिर की छतों को खोल देगा।"


सुएटोनियस ने लिखा कि रोमन सम्राट कैलीगुला ने 40 ई. में आदेश दिया कि जियस के साथ-साथ ग्रीस में स्थित सभी मूर्तियों का सिर काट कर लाया जाए और उन सभी के धड़ों पर उसका चेहरा लगा दिया जाए। हालांकि कैलीगुला का आदेश लागू हो पाता इससे पहले ही उसकी हत्या हो गई थी। इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि मूर्ति कब नष्ट हुई थी। माना जाता है कि पांचवी शताब्दी में जब ईसाई धर्म ग्रीस में फैला उस दौरान यह नष्ट हुई होगी।


अर्टेमिस का मन्दिर, तुर्की

artemis

इतिहासकार माइकल इम्मेंडोर्फे आर्टेमिस के मंदिर पर लिखी अपनी एक किताब में बताते हैं कि मंदिर करीब 550 ई.पू. में बना था। इसे लिदिया के राजा क्रोएसस ने बनावाया था। यह मंदिर अर्टेमिस का है जो जानवारों और शिकार से जुड़ी एक देवी मानी जाती हैं। शुरुआत में जब यह बना तो बहुत छोटा था, लेकिन इस इलाके में जीत के बाद क्रोएसस ने इसे काफी बड़ा बनवाया। सन 262 में भूकंप से मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया।


हैलिकारनेसस का मकबरा

HALICARNASSUS

तुर्की के उत्तरी अनातोलिया के कैरिया में माउसोलस नाम के सामंत की मृत्यु के बाद 353 ई.पू. में एक मकबरा बनवाया गया था। वहीं, रोमन लेखक प्लिनी द एल्डर 23 से 79 ई. में लिखते हैं कि इस मकबरे को बनाने में बेहतरीन मूर्तिकारों की एक टीम लगी थी। 350 ई.पू. में माउसोलस की पत्नी का निधन हो गया, तब यह मकबरा अधूरा ही था। मूर्तिकारों को पैसे का भुगतान कैसे होगा इसकी समस्या होने के बावजूद टीम ने इसे पूरा किया। प्लिनी ने लिखा है, "उन्होंने अपना काम नहीं छोड़ा। उनका मानना था कि यह उनकी कला और प्रसिद्धि का भी एक स्मारक है।" यह इमारत 43 मीटर ऊंचा था और यह पिरामिड की तरह दिखती थी।


रोड्स का कॉलॉसस, ग्रीस

COLOSSUS OF RHODES

रोड्स का कॉलॉसस ग्रीक सूर्य देवता हीलियस की मूर्ति थी। वर्तमान तुर्की के रोड्स में तट से जुड़े एक टापू पर इस विशाल मूर्ति को 280 ई.पू. में बनवाया गया था। 226 ई.पू. में एक भूकंप के कारण यह मूर्ति नष्ट हो गई। इस मूर्ति का आज कोई भी हिस्सा नहीं है। इसके अलावा इसकी सही जगह पर भी बहस होती रही है। बताया जाता है कि मूर्ति 34 मीटर लंबी थी।


एलेक्जेंड्रिया का लाइट हाउस, ग्रीस

ALEXANDRIA ligh house

एलेक्जेंड्रिया का लाइट हाउस नाविकों को रास्ता दिखाने के लिए था। फिरौन टॉलेमी द्वित्तीय फिलाडेल्फस जिन्होंने करीब 285ई.पू. से 246 ई.पू. तक राज किया के आदेश पर इस लाइट हाउस को बनाया गया था। प्रचीन इतिहासकारों के मुताबिक मिस्र में एलेक्जेंड्रिया का बंदरगाह उस समय दुनिया के सबसे बड़े बंदरगाहों में से एक था।


बंदरगाह के लिए प्रवेश करने के दौरान यह फैरो के द्वीप पर बनाया गया था। दिन में यह लाइट हाउस एक आइने से सूर्य की किरणों को प्रतिबिंबित करता था। वहीं, रात में जब जरूरत पड़ती थी तो इसमें आवश्यक्ता के हिसाब से आग लगा दी जाती थी। बताया जाता है कि लाइट हाउस करीब 122 मीटर ऊंचा था। 14वीं शताब्दी में यह लाइट हाउस भूकंप से ढह गया।



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